Republic Day: 26 जनवरी, भारतीय गणतंत्र दिवस, भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव है। यह दिन न केवल भारत के संविधान के लागू होने का प्रतीक है, बल्कि यह उन अनगिनत लोगों के प्रयास और समर्पण को भी याद करने का अवसर है, जिन्होंने इस ऐतिहासिक दिन को मुमकिन बनाया।
भारतीय गणराज्य का निर्माण एक साधारण प्रक्रिया नहीं थी। संविधान का निर्माण उन बहादुर और दूरदर्शी नेताओं के अथक प्रयासों का परिणाम है, जिन्होंने भारत के विविधतापूर्ण समाज के लिए एक ऐसा संविधान तैयार किया, जो हर वर्ग, धर्म, और समुदाय को साथ लेकर चलता है।
इस लेख में हम भारतीय संविधान के निर्माण से जुड़ी उन अनसुनी कहानियों, गुमनाम नायकों, और उनके योगदानों को गहराई से समझेंगे, जिनकी वजह से यह ऐतिहासिक दिन संभव हुआ।

Table of Contents
भारतीय संविधान: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की चुनौतियां
1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के साथ ही एक नया और अधिक जटिल युग शुरू हुआ। ब्रिटिश शासन की समाप्ति के बाद देश को एक ऐसे संविधान की आवश्यकता थी, जो भारतीय समाज की विविधता, उसकी जटिलताओं और जरूरतों को समझ सके।
- विभाजन की त्रासदी:
विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच धार्मिक और सांप्रदायिक तनाव चरम पर था। ऐसी स्थिति में एक ऐसा संविधान तैयार करना, जो हर समुदाय को साथ लेकर चले, आसान नहीं था। - सामाजिक असमानता:
जातिगत भेदभाव, आर्थिक असमानता, और सामाजिक अन्याय जैसी समस्याएं भारतीय समाज के हर हिस्से में मौजूद थीं।
2. संविधान सभा का गठन
भारतीय संविधान को तैयार करने के लिए संविधान सभा का गठन किया गया। यह सभा कैबिनेट मिशन योजना के तहत स्थापित की गई थी।
संविधान सभा की संरचना
- प्रारंभ में इसके 389 सदस्य थे।
- विभाजन के बाद यह संख्या घटकर 299 हो गई।
- संविधान सभा में हर वर्ग, धर्म, और समुदाय का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया
1. ड्राफ्टिंग कमेटी की स्थापना
संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने की। यह कमेटी भारतीय संविधान के मुख्य प्रावधानों को तैयार करने के लिए जिम्मेदार थी।
मुख्य चुनौतियां
- धार्मिक सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता:
भारत जैसे बहुधर्मी देश में धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करना एक कठिन कार्य था। - जाति व्यवस्था का उन्मूलन:
संविधान के जरिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती थी। - संघीय ढांचा:
केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों का संतुलन बनाना जरूरी था।
गुमनाम नायक: अनदेखे सितारे

संविधान सभा में कुछ ऐसे नेता भी थे, जिनके नाम इतिहास में प्रमुखता से नहीं उभरे, लेकिन उनका योगदान अतुलनीय था।
1. हरेंद्र कुमार मुखर्जी
हरेंद्र कुमार मुखर्जी, संविधान सभा के उपाध्यक्ष, एक ईसाई समुदाय से थे। उन्होंने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा में अहम भूमिका निभाई।
मुख्य योगदान
- धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता का समर्थन।
- अल्पसंख्यक समुदाय के लिए विशेष प्रावधान सुनिश्चित करना।
2. सय्यद मोहम्मद सादुल्लाह
असम के नेता सय्यद मोहम्मद सादुल्लाह ने उत्तर-पूर्वी भारत की आवाज को संविधान सभा में उठाया।
विशेष योगदान
- आदिवासी और जनजातीय समुदायों के अधिकार सुनिश्चित करना।
- क्षेत्रीय विविधता को संविधान में स्थान देना।
3. टी.टी. कृष्णामाचारी
टी.टी. कृष्णामाचारी ड्राफ्टिंग कमेटी के एक महत्वपूर्ण सदस्य थे।
उनका योगदान
- संविधान की भाषा को सरल और प्रभावी बनाना।
- कानूनों और प्रावधानों में स्पष्टता लाना।
4. के.एम. मुंशी
के.एम. मुंशी ने मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों को संविधान में शामिल करने में अहम भूमिका निभाई।
प्रमुख भूमिका
- मौलिक अधिकारों की संरचना तैयार करना।
- भारतीय संस्कृति और परंपराओं को संविधान में स्थान दिलाना।
महिलाओं का योगदान: साहसी और प्रेरणादायक
संविधान सभा में 15 महिलाएं थीं, जिन्होंने विभिन्न मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद की।
1. हंसा मेहता
महिलाओं के अधिकारों की प्रबल समर्थक, हंसा मेहता ने महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करने में बड़ी भूमिका निभाई।
2. सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू ने महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ-साथ भाषाई विविधता की रक्षा के लिए कई सुझाव दिए।
3. दुर्गाबाई देशमुख
दुर्गाबाई देशमुख ने शिक्षा और स्वास्थ्य सुधारों के लिए संविधान सभा में कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखे।
संविधान में प्रमुख मुद्दे

1. भाषाई विविधता
भारत में सैकड़ों भाषाएं बोली जाती हैं। ऐसे में यह निर्णय लेना कठिन था कि कौन-सी भाषा आधिकारिक भाषा बनेगी।
समाधान
- हिंदी और अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा चुना गया।
- क्षेत्रीय भाषाओं को भी मान्यता दी गई।
2. धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत
भारत जैसे बहुधर्मी देश में धर्मनिरपेक्षता को स्थापित करना एक बड़ी चुनौती थी।
प्रावधान
- हर नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता।
- धार्मिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए ठोस प्रावधान।
3. सामाजिक न्याय
जातिगत भेदभाव को समाप्त करना और समानता सुनिश्चित करना संविधान के मुख्य उद्देश्य थे।
प्रमुख प्रावधान
- अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण।
- समानता का अधिकार।
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26 जनवरी: Republic Day का महत्व
क्यों चुना गया 26 जनवरी?
26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने “पूर्ण स्वराज” का प्रस्ताव पारित किया था। यह दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐतिहासिक मोड़ का प्रतीक है।
निष्कर्ष
Republic Day केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि उन गुमनाम नायकों को याद करने का दिन है, जिनकी मेहनत और संघर्ष ने भारतीय लोकतंत्र की नींव रखी। भारतीय संविधान के ये अनदेखे नायक हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
FAQs
1. भारतीय संविधान का निर्माण कब शुरू हुआ और कब समाप्त हुआ?
भारतीय संविधान का निर्माण 9 दिसंबर 1946 को शुरू हुआ और 26 नवंबर 1949 को समाप्त हुआ।
2. संविधान सभा में कितनी महिलाएं थीं?
संविधान सभा में कुल 15 महिलाएं थीं।
3. 26 जनवरी को ही गणतंत्र दिवस क्यों चुना गया?
26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने “पूर्ण स्वराज” का प्रस्ताव पारित किया था। इस दिन को गणराज्य के रूप में मनाने का फैसला हुआ।
4. संविधान निर्माण में मुख्य चुनौतियां क्या थीं?
भाषाई विविधता, सामाजिक न्याय, और धर्मनिरपेक्षता को संतुलित करना मुख्य चुनौतियां थीं।
5. भारतीय संविधान में गुमनाम नायकों की भूमिका क्या थी?
गुमनाम नायकों ने संविधान के हर पहलू को संतुलित और समावेशी बनाने में योगदान दिया।
यह लेख उन गुमनाम नायकों को समर्पित है, जिनके प्रयासों ने भारत को गणराज्य बनाया।