कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया।
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ।
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ।
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से।
हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही।
तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूँडो चाहा था तुम्हें इक यही इल्ज़ाम बहुत है।
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया।