Donald Trump के कार्यकाल में अमेरिका का विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अलग होना, वैश्विक स्वास्थ्य जगत में एक ऐसा निर्णय था जिसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। यह सिर्फ एक राजनीतिक कदम नहीं था, बल्कि इसके पीछे गहरी आर्थिक, रणनीतिक और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ थीं। इस लेख में हम आपको पूरी कहानी सरल भाषा में बताएंगे, ताकि आप समझ सकें कि यह क्यों हुआ, इसके पीछे क्या कारण थे, और इसका भविष्य पर क्या असर पड़ेगा।

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Donald Trump ने WHO से अलग होने का फैसला क्यों किया?

Donald Trump का कहना था कि WHO कोविड-19 महामारी से सही तरीके से निपटने में असफल रहा। उनके अनुसार:

  1. WHO ने चीन का पक्ष लिया: ट्रम्प का मानना था कि WHO ने कोविड-19 की शुरुआत में चीन को बचाने की कोशिश की।
  2. तत्काल सुधार न करना: महामारी जैसी गंभीर स्थिति के बावजूद WHO ने अपने कामकाज में सुधार नहीं किए।
  3. अमेरिका से भारी फंड की माँग: ट्रम्प ने WHO पर अमेरिका से असंतुलित आर्थिक योगदान लेने का आरोप लगाया।

ट्रम्प ने अपने फैसले को सही ठहराते हुए कहा, “यह समय है जब अमेरिका अपने धन और विशेषज्ञता का इस्तेमाल कहीं बेहतर तरीके से करे।”


अमेरिका का WHO से अलग होना: एक ऐतिहासिक कदम

Donald Trump के कार्यकाल के दौरान यह निर्णय बहुत बड़ा और अभूतपूर्व था। अमेरिका WHO का सबसे बड़ा योगदानकर्ता था।

  • अमेरिका ने WHO को कुल फंड का 22.5% योगदान दिया।
  • चीन, जिसकी आबादी अमेरिका से तीन गुना है, उसने केवल 0.14% फंड दिया।

मुख्य कार्यकारी आदेश के बिंदु:

  1. WHO को मिलने वाला अमेरिकी धन तुरंत रोक दिया गया।
  2. WHO के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे सभी अमेरिकी विशेषज्ञों को वापस बुला लिया गया।
  3. WHO के स्थान पर अन्य पारदर्शी और भरोसेमंद संगठनों की पहचान करने का निर्णय।
  4. WHO द्वारा प्रस्तावित महामारी संधि में अमेरिका ने अपनी भागीदारी समाप्त कर दी।

WHO की फंडिंग पर इसका प्रभाव

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WHO के लिए अमेरिका सबसे बड़ा फंडिंग स्रोत था।

  • WHO की फंडिंग दो भागों में होती है:
    • अनिवार्य अंशदान: सदस्य देशों से लिया जाने वाला निश्चित फंड।
    • स्वैच्छिक योगदान: देश या संगठनों द्वारा दिया जाने वाला अतिरिक्त फंड।

2023 के आंकड़े:

  • अमेरिका का योगदान: 22.5% (अनिवार्य) और 13% (स्वैच्छिक)।
  • चीन का योगदान: केवल 0.14%।
  • दूसरा सबसे बड़ा दाता: बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन।

अमेरिका के हटने का असर:

  • WHO को फंडिंग के लिए नए स्रोत ढूंढने होंगे।
  • कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स, जैसे टीकाकरण और मलेरिया उन्मूलन, प्रभावित होंगे।

भारत और अन्य देशों पर असर

भारत उन देशों में से एक है जो WHO के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य योजनाएँ चलाता है।

  1. टीकाकरण अभियान: भारत में हर साल लाखों बच्चों को टीके लगाए जाते हैं, जिसमें WHO का अहम योगदान होता है।
  2. बीमारियों का नियंत्रण: मलेरिया, तपेदिक, और एचआईवी जैसे रोगों को नियंत्रित करने में WHO ने भारत की मदद की है।
  3. वैक्सीन मॉनिटरिंग: WHO की टीमें भारत में वैक्सीन कवरेज और गुणवत्ता की निगरानी करती हैं।

संभावित असर:

  • WHO से कम फंड मिलने पर भारत को अपनी योजनाओं के लिए अतिरिक्त धन और संसाधन जुटाने होंगे।
  • अमेरिका की विशेषज्ञता की अनुपस्थिति से भारत जैसे देशों को मार्गदर्शन में कठिनाई हो सकती है।

WHO की प्रतिक्रिया

WHO ने इस निर्णय पर खेद व्यक्त करते हुए कहा:

“यह सिर्फ अमेरिका नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए एक चुनौती है।”

World Health Organization (WHO) ने यह भी बताया कि पिछले सात वर्षों में उसने अपनी जवाबदेही और पारदर्शिता में बड़े सुधार किए हैं।


अमेरिका का WHO से अलग होना: क्या यह कानूनी है?

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World Health Organization (WHO) के संविधान में अलग होने का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन 1948 में संगठन से जुड़ते समय अमेरिकी कांग्रेस ने यह शर्त रखी थी:

  • एक साल का नोटिस देकर और
  • वित्तीय दायित्वों को पूरा करके अमेरिका WHO से अलग हो सकता है।

भारत और वैश्विक दक्षिण की भूमिका

विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका द्वारा छोड़े गए खाली स्थान को भारत और चीन जैसे देश भर सकते हैं।

  • प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़े सुधार किए हैं।
  • भारत वैश्विक दक्षिण की आवाज़ बनकर उभर सकता है।

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भविष्य की चुनौतियाँ और संभावनाएँ

  1. फंडिंग की कमी: WHO को नई फंडिंग के लिए बड़े दानदाताओं और देशों पर निर्भर रहना होगा।
  2. अन्य देशों की भूमिका: भारत, चीन और यूरोपीय संघ को वैश्विक स्वास्थ्य नेतृत्व करना होगा।
  3. स्वास्थ्य सुरक्षा: WHO को अपनी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए नए साझेदारों की जरूरत होगी।

निष्कर्ष

Donald Trump का यह निर्णय केवल एक राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ। यह कदम World Health Organization और अमेरिका दोनों के लिए बड़ी चुनौतियाँ लेकर आया।
लेकिन, यह भारत और अन्य विकासशील देशों के लिए अपनी भूमिका मजबूत करने और वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में नेतृत्व करने का अवसर भी है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि World Health Organization इन चुनौतियों का सामना कैसे करता है और दुनिया के देश किस प्रकार इस अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन का समर्थन करते हैं।

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